इस आंदोलन के दो महत्त्व थे-
(1) इसने औपनिवेशिक सरकार को जनजातियों के हक में वन अधिनियमों में सुधार करने के लिए मजबूर कर दिया ताकि दीकु लोग जनजातियों की जमीन पर आसानी से कब्जा न कर सकें ।
(2) इस आंदोलन से साबित हो गया कि जनजातियाँ अन्याय का विरोध करने एवं औपनिवेशिक सरकार के दमनात्मक एवं शोषक शासन के खिलाफ अपना गुस्सा प्रकट करने में सक्षम हैं।