(1) स्वदेशी आन्दोलन के प्रसार से भारत के राष्ट्रवादियों ने लोगों को विदेशी कपड़े के बहिष्कार के लिए प्रेरित किया।
(2) औद्योगिक समूह अपने सामूहिक हितों की रक्षा के लिए संगठित हो गए और उन्होंने आयात शुल्क बढ़ाने तथा अन्य रियायतें देने के लिए भारत सरकार पर दबाव डाला।
(3) 1906 के पश्चात् चीन भेजे जाने वाले भारतीय धागे के निर्यात में भी कमी आने लगी थी। चीनी बाजार चीन और जापान की मिलों के उत्पाद से भर गए थे। परिणामस्वरूप भारत के उद्योगपति धागे की बजाय कपड़ा बनाने लगे। सन् 1900 से 1912 की अवधि में भारत में सूती कपड़े का उत्पादन दोगुना हो गया था।