(1) नौकरियों के समाचार गाँवों में पहुँचते ही मजदूर बड़ी संख्या में शहरों की ओर चले जाते थे।
(2) शहरों में नौकरी मिलने की सम्भावना मित्रों, रिश्तेदारों से जान-पहचान पर निर्भर करती थी। किसी कारखाने में यदि मजदूरों का कोई रिश्तेदार या मित्र लगा हुआ होता था, तो उन्हें नौकरी मिलने की अधिक सम्भावना होती थी।
(3) रोजगार चाहने वाले लोगों को हफ्तों प्रतीक्षा करनी पड़ती थी। वे पुलों के नीचे या रैन-बसेरों में रात काटते थे। कुछ बेरोजगार शहर में बने निजी रैन-बसेरों में रहते थे।
(4) अनेक उद्योगों में मौसमी काम के कारण कामगारों को बीच-बीच में बहुत समय तक खाली बैठना पड़ता था। काम का सीजन गुजर जाने के बाद गरीब पुनः सड़क पर आ जाते थे और कुछ लोग सर्दी में अपने गाँवों में चले जाते थे। परन्तु अधिकतर मजदूर शहरों में ही छोटा-मोटा काम ढूंढ़ने का प्रयास करते थे।