उन्नीसवीं शताब्दी के आरम्भ में भारतीय सूती वस्त्र उद्योग का पतन होने लगा। इसके लिए निम्नलिखित परिस्थितियाँ उत्तरदायी थीं-
इंग्लैण्ड में कपास उद्योग के विकास के लिए उद्योगपतियों के दबाव में सरकार ने भारतीय कपड़े पर आयात शुल्क लगा दिया ताकि मैनचेस्टर में बने कपड़े बाहरी प्रतिस्पर्धा के बिना इंग्लैण्ड में सरलता से बिक सकें।
इंग्लैण्ड के उद्योगपतियों ने ईस्ट इण्डिया कम्पनी पर भी दबाव डाला कि वह ब्रिटिश कपड़ों को भारतीय बाजारों में भी बेचे।
ब्रिटेन से भारत में आने वाला कपड़ा सस्ता और सुन्दर था। भारतीय वस्त्र इनका मुकाबला नहीं कर सके।
भारतीय बुनकरों को अच्छी किस्म के कपास की प्राप्ति नहीं हो पा रही थी।