दबाव समूह, राजनीतिक दल तथा अन्य संगठित हित समूह भी अनेक तरह से सत्ता में भागीदारी करते हैं। इसे हम निम्न प्रकार समझ सकते हैं-
(1) विभिन्न प्रकार के दबाव-समूह और आंदोलनों द्वारा शासन को प्रभावित और नियंत्रित करने का प्रयास किया जाता है। विभिन्न तरीकों से वे अपनी बात मनवाते हैं।
(2) लोकतंत्र में लोगों के सामने सत्ता के दावेदारों के बीच चुनाव का विकल्प होता है। समकालीन लोकतांत्रिक व्यवस्थाओं में यह विकल्प विभिन्न राजनीतिक दलों के रूप में उपलब्ध होता है। राजनीतिक दल सत्ता के लिए आपस में प्रतिस्पर्धा करते हैं। राजनीतिक दलों की यह आपसी प्रतिद्वंद्विता ही इस बात को सुनिश्चित कर देती है कि सत्ता एक व्यक्ति या समूह के हाथ में न रहे। एक बड़ी समयावधि में देखें तो पाएंगे कि सत्ता बारी-बारी से अलग-अलग विचारधारा और सामाजिक समूहों वाली पार्टियों के हाथ आती-जाती रहती है। कई बार सत्ता की यह भागीदारी एकदम प्रत्यक्ष दिखती है क्योंकि दो या अधिक पार्टियाँ मिलकर चुनाव लड़ती हैं या सरकार का गठन करती हैं।
(3) इसी प्रकार लोकतंत्र में हम व्यापारी, उद्योगपति, किसान और औद्योगिक मजदूर कैसे कई संगठित हितसमूहों को भी सक्रिय देखते हैं । सरकार की विभिन्न समितियों में सीधी भागीदारी करके या नीतियों पर अपने सदस्य-वर्ग के लाभ के लिए दबाव बनाकर ये समूह भी सत्ता में भागीदारी करते हैं।