दो कुण्डलियों का अन्तः प्रेरण $0.005 H$ है। पहली कुण्डली में धारा $I = I _0 \sin \omega t$ से परिवर्तित होती है जहां $I _0=10 A$ तथा $\omega=100 \pi$ रेडियन/सेकंड तो उच्चतम वि. वा.ब. :
[1998]
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$ e=-\frac{M d i}{d t}=0.005 \times i_0 \cos \omega t \times \omega$
$=0.005 \times 10 \times 100 \pi=5 \pi V $
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दो कुण्डलियों के स्वप्रेरण $2 mH$ तथा $8 mH$ हैं। दोनों को इतना नजदीक रखा गया कि पहली कुण्डली का चुम्बकीय फ्लक्स दूसरी से भी लिंक हो सके। तो इनके बीच अन्तः प्रेरण है :
तार का एक पाश (लूप) किसी चुम्बकीय क्षेत्र में घूर्णन करता है तो एक परिक्रमण (चक्र) में इसमें प्रेरित ई.एम. एफ. (e.m.f.) की दिशा में परिवर्तन की आवृत्ति होती है:
एक लम्बे बहुकुंडलक(सोलिनाइड) में 500 फेरें हैं। जब इसमें 2 ऐम्पीयर की धारा प्रवाहित की जाती है, तो हर फेरे से सम्बन्धित चुम्बकीय फ्लक्स $4 \times 10^{-3} Wb$ होती है। सोलिनाइड का स्वप्रेरकत्व होगा:
$400 \Omega$ प्रतिरोध की एक कुंडली को एक चुम्बीय क्षेत्र में रखा गया है। यदि कुंडली से संबद्ध चुम्बकीय फ्लक्स $\phi( wb )$ समय $t$ ( सेकंड) के साथ निम्न प्रकार परिवर्तित होता है, $\phi=50 t ^2+4$ तो कुण्डली में प्रवाहित धारा ( जब $t=2$ सेकंड) होगी:
एक चालक वृत्तीय फंद को $0.04 T$ के अचर चुम्बकीय क्षेत्र में इस तरह रखा है कि फंद का तल चुम्बकीय क्षेत्र की दिशा से लम्ब दिशा में है। फन्द् की त्रिज्या $2 mm / s$. की दर से घटने लगती है। जब फन्द की त्रिज्या $2 cm$ होगी तो इसमें प्रेरित वि.वा.ब. $( emf )$ का मान होगा:-
$r$ त्रिज्या की एक पतली अर्द्धवृत्ताकार चालक रिंग (वलय) $( PQR )$ किसी क्षैतिज चुम्बकीय क्षेत्र $B$ में गिर रही है। गिरते समय इसका समतल, आरेख में दर्शाये गये अनुसार, ऊध्र्वाधर रहता है। जब गिरती हुई रिंग की चाल $v$ है तो, इसके दो सिरों के बीच विकसित विभवान्तर होगा