दो कुण्डलियों के स्वप्रेरण $2 mH$ तथा $8 mH$ हैं। दोनों को इतना नजदीक रखा गया कि पहली कुण्डली का चुम्बकीय फ्लक्स दूसरी से भी लिंक हो सके। तो इनके बीच अन्तः प्रेरण है :
[2006]
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(b) $M =\sqrt{ M _1 M _2}=\sqrt{2 \times 8}=4 mH$
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एक चालक वृत्तीय फंद को $0.04 T$ के अचर चुम्बकीय क्षेत्र में इस तरह रखा है कि फंद का तल चुम्बकीय क्षेत्र की दिशा से लम्ब दिशा में है। फन्द् की त्रिज्या $2 mm / s$. की दर से घटने लगती है। जब फन्द की त्रिज्या $2 cm$ होगी तो इसमें प्रेरित वि.वा.ब. $( emf )$ का मान होगा:-
$r$ त्रिज्या की एक पतली अर्द्धवृत्ताकार चालक रिंग (वलय) $( PQR )$ किसी क्षैतिज चुम्बकीय क्षेत्र $B$ में गिर रही है। गिरते समय इसका समतल, आरेख में दर्शाये गये अनुसार, ऊध्र्वाधर रहता है। जब गिरती हुई रिंग की चाल $v$ है तो, इसके दो सिरों के बीच विकसित विभवान्तर होगा
दो कुण्डलियों का अन्तः प्रेरण $0.005 H$ है। पहली कुण्डली में धारा $I = I _0 \sin \omega t$ से परिवर्तित होती है जहां $I _0=10 A$ तथा $\omega=100 \pi$ रेडियन/सेकंड तो उच्चतम वि. वा.ब. :
एक आयताकार कुण्डली का क्षेत्रफल 25 सेमी $^2$, प्रतिरोध $100 \Omega$ तथा फेरों की संख्या 20 है। यदि चुम्बकीय क्षेत्र कागज के तल के लम्बवत् हो तथा 1000 टेसला/सेकण्ड की दर से बदलता हो तो धारा का मान है
एक कुण्डली जिसमें 50 फेरे हैं एक चुम्बकीय क्षेत्र $2 \times$ $10^{-2} T$ के लम्बवत् रखी जाती है। कुण्डली का क्षेत्रफल 100 सेमी $^2$ है। इसमे उत्पन्न प्रेरक वि.वा.ब. $0.1 V$ है। कुण्डली को 1 सेकण्ड में चुम्बकीय क्षेत्र से हटा दिया जाता है तो $t$ का मान है
एक परिपथ जिसका प्रतिरोध $R$ है उसमें लगने वाला चुम्बकीय फ्लक्स $\Delta \phi, \Delta t$ समय में बदल जाता है तो परिपथ में बनने वाला कुल आवेश $Q , \Delta t$ समय में है:
$10 \Omega$ प्रतिरोध की एक कुंडली में, इससे संबद्व चुम्बकीय फ्लक्स के परिवर्तन से प्रेरित विधुत धारा को समय के फलन के रूप में दिये गए आरेख द्वारा प्रदर्शित किया गया है तो, इस कुंडली से संबद्व फ्लक्स में परिवर्तन का मान वेबर में है: