मध्याह्न भोजन योजना के शुरू होने से स्कूलों में बच्चों की संख्या में वृद्धि हुई है। कई ऐसे बच्चे होते हैं जो खाली पेट ही स्कूल चले आते हैं, जिस वजह से पढ़ाई में उनका मन नहीं लगता। कितने बच्चे तो स्कूल की आधी छुट्टी में भोजन करने जाते हैं और फिर वापस स्कूल नहीं आते
कितने बच्चों की माताओं को अपने बच्चों के लिए भोजन बनाने के लिए अपने काम को छोड़कर वापस आना पड़ता था। उन्हें अब इस योजना के शुरू होने के बाद ऐसा नहीं करना पड़ता है। मध्याह्न भोजन योजना के अन्तर्गत बच्चों को भोजन के साथ-साथ उनके बीच की सामाजिक दूरियों को मिटाने का प्रयास भी किया जाता है। सभी बच्चों को एक साथ बैठाकर एक ही प्रकार का भोजन कराया जाता है, चाहे उनकी जाति कोई भी हो। भोजन बनाने के लिए किसी भी जाति के लोगों को नियुक्त किया जा सकता है चाहे वे दलित हो या महादलित ।