स्वतंत्रता के पूर्व बिहार को देश का चीनी का कटोरा कहा जाता था। 1942-43 में राज्य में कुल 32 चीनी मिलें थीं जबकि देश मे मिर्फ 140 चीनी मिलें थीं। वहीं 2000 तक राज्य में चीनी मिलों की संख्या घटकर सिर्फ 10 रह गयी जबकि भारतवर्ष में चीनी मिलों की संख्या बढ़कर 495 हो गयी।
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बिहार में चीनी मिलों की संख्या घटती गयी। पहले यहाँ के गन्नों में रस बहुत अधिक होता था, जिससे कम गन्ने में भी अधिक चीनी बनता था और कम लागत में अधिक मुनाफा होता है पर आज के समय में यहाँ पैदा होने वाले गन्नों में रस बहुत कम मात्रा होता है, जिससे बहुत अधिक गन्नों से भी बहुत थोड़ा-सा चीनी बनता है। इससे लोगों को अधिक लागत में भी उतना मुनाफा नहीं होता था। उन्हें घाटा लगने लगा। सरकार की तरफ से भी चीनी मिलों को कोई प्रोत्साहन नहीं मिला । जिससे धीरे-धीरे राज्य की ज्यादातर चीनी मिलें बंद हो गयीं।
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बिहार में मक्का उद्योग लगाने की काफी संभावनाएं हैं। इन इकाइयों के द्वारा मक्के के विभिन्न उत्पाद जैसे – स्टार्च, बेबीकान, पॉपकार्न, कार्न-फ्लेक्स, मक्के का आटा, मुर्गियों का चारा, मक्के का तेल । आदि बनाया जा सकता है। इनके क्या फायदे नुकसान है, चर्चा करें।