19वीं सदी के अन्त में मुद्रण संस्कृति ने महिलाओं को निम्न प्रकार प्रभावित किया-
19वीं सदी में मुद्रण संस्कृति के प्रादुर्भाव से महिलाएँ पाठिका तथा लेखिका की भूमिका में ज्यादा अहम हो गई थीं।
मशहूर उपन्यासकारों में लेखिकाएँ अग्रणी थीं। उनके लेखन से नई नारी की परिभाषा उभरी-जिसका व्यक्तित्व सुदृढ़ था, जिसमें गहरी सूझ-बूझ थी, जिसका अपना दिमाग था तथा अपनी इच्छाशक्ति थी।
उन्नीसवीं सदी में छपी हुई पुस्तकों में महिलाओं के जीवन तथा उनकी भावनाओं को स्पष्टता तथा गहनता से व्यक्त किया जाने लगा।
मध्यवर्गीय परिवारों में महिलाएँ पढ़ने में पहले की अपेक्षा अधिक रुचि लेने लगीं। उन्नीसवीं सदी के मध्य में छोटे-बड़े शहरों में स्कूल खुलने लगे, तो उदारवादी माता-पिता पुत्रियों को स्कूलों में भेजने लगे।
कई स्त्रियाँ पत्रिकाओं में लेखिकाओं के रूप में काम करने लगीं। पत्रिकाओं ने नारी-शिक्षा की आवश्यकता पर बल दिया।
हिन्दू तथा मुस्लिम दोनों सम्प्रदायों की महिलाओं में जागरूकता आई।
अनेक महिलाओं ने महिलाओं की दयनीय स्थिति पर लिखा तथा महिलाओं की शिक्षा, विधवा जीवन, विधवा-विवाह जैसे विषयों पर लेख लिखे गए।