यूरोपीय लोगों में पढ़ने का जुनून-यूरोपीय लोगों में पढ़ने का जुनून पैदा होने के निम्न कारण थे-
(1) साक्षरता और स्कूलों का प्रसार-सत्रहवीं तथा अठारहवीं सदी में यूरोप के अधिकांश देशों में साक्षरता तथा स्कूलों का प्रसार हुआ। इससे लोगों में पढ़ने का जुनून उत्पन्न हो गया। अतः लोगों को पुस्तक उपलब्ध कराने के लिए मुद्रक अधिकाधिक संख्या में पुस्तक छापने लगे।
(2) विभिन्न प्रकार के साहित्य का प्रकाशन नये पाठकों की रुचि का ध्यान रखते हुए विभिन्न प्रकार का साहित्य छपने लगा। पुस्तक-विक्रेताओं ने गांव-गांव जाकर छोटी-छोटी पुस्तकें बेचने वाले फेरी वालों को नियुक्त किया। ये पुस्तकें मुख्यत: पंचांग, लोक-गाथाओं और लोकगीतों की हुआ करती थीं।
(3) मनोरंजन-प्रधान पुस्तकों की छपाई-कुछ समय बाद मनोरंजन-प्रधान पुस्तकें भी छापी जाने लगीं। ये पुस्तकें काफी सस्ती थीं तथा गरीब लोग भी इन्हें खरीदकर पढ़ सकते थे।
(4) प्रेम कहानियाँ तथा गाथाएँ-मनोरंजन-प्रधान पुस्तकों के अतिरिक्त चार-पाँच पृष्ठों की प्रेम-कहानियाँ भी छापी जाती थीं। कुछ अतीत की गाथाएँ होती थीं, जिन्हें 'इतिहास' कहते थे।
(5) पत्रिकाओं का प्रकाशन-अठारहवीं शताब्दी के आरम्भ से पत्रिकाओं का प्रकाशन शुरू हुआ। इनमें समकालीन घटनाओं का वर्णन होता था तथा ये मनोरंजन की सामग्री भी प्रस्तुत करती थीं। समाचार-पत्रों तथा पत्रिकाओं में युद्ध और व्यापार से सम्बन्धित जानकारी के अतिरिक्त दूर देशों के समाचार होते थे।
(6) विज्ञान तथा दर्शन सम्बन्धी पुस्तकों का प्रकाशन-विज्ञान तथा दर्शन सम्बन्धी पुस्तकों का प्रकाशन भी होने लगा। इन सबके प्रभावस्वरूप लोगों में पढ़ने का जुनून पैदा हो गया।