उन्नीसवीं सदी में यूरोप में साक्षरता के प्रसार से बच्चों, महिलाओं और मजदूरों के रूप में बड़ी मात्रा में नये पाठक-वर्ग का उदय हुआ।
(1) बच्चों के रूप में नये पाठक-वर्ग का उदय उन्नीसवीं सदी के अन्त में प्राथमिक शिक्षा अनिवार्य होने के परिणामस्वरूप बच्चों के रूप में नये पाठक-वर्ग का उदय हुआ। मुद्रकों के लिए पाठ्य-पुस्तकों का उत्पादन महत्वपूर्ण हो गया। फ्रांस में 1857 में एक प्रेस या मुद्रणालय स्थापित किया गया, जिसमें पुरानी और नई, दोनों प्रकार की परी-कथाओं और लोक-कथाओं का प्रकाशन किया गया। जर्मनी के ग्रिम बन्धुओं ने वर्षों के परिश्रम से किसानों से लोक-कथाएँ इकट्ठी की और उन्हें 1812 के एक संकलन में छापा गया।
(2) महिलाओं के रूप में नये पाठक-वर्ग का उदय साक्षरता के प्रसार से महिलाओं के रूप में भी नये पाठक-वर्ग का उदय हुआ। पेनी मैगजीन्स या एक- पैसिया पत्रिकाएँ विशेष रूप से महिलाओं के लिए होती थीं। ये महिलाओं को सही चाल-चलन और गृहस्थी सिखाने वाली निर्देशिकाओं के समान थीं। उन्नीसवीं सदी में जब उपन्यास-साहित्य का प्रकाशन होने लगा, तो महिलाएँ उनकी महत्वपूर्ण पाठिकाएँ मानी गईं। प्रसिद्ध उपन्यासकारों में लेखिकाएँ अग्रणी थीं।
(3) मजदूरों के रूप में नये पाठक-वर्ग का उदय सत्रहवीं सदी से ही किराए पर पुस्तकें देने वाले पुस्तकालय स्थापित हो गए थे। उन्नीसवीं शताब्दी में इंग्लैण्ड में ऐसे पुस्तकालयों का उपयोग सफेद-कॉलर मजदूरों, दस्तकारों एवं निम्नवर्गीय लोगों को शिक्षित करने के लिए किया गया।