मुद्रण संस्कृति द्वारा फ्रांसीसी क्रान्ति के लिए जमीन तैयार करना-कुछ इतिहासकारों का मानना है कि मुद्रण संस्कृति ने फ्रांसीसी क्रान्ति के लिए अनुकूल परिस्थितियाँ उत्पन्न की। इसके पक्ष में निम्नलिखित तर्क प्रस्तुत किये जाते हैं-
(1) चिन्तकों के विचारों का प्रसार-मुद्रण संस्कृति के कारण फ्रांसीसी जनता में फ्रांस के चिन्तकों के विचारों का प्रसार हुआ। उन्होंने अपनी रचनाओं में परम्पराओं, अन्धविश्वासों तथा निरंकुशवाद की कटु आलोचना की। उन्होंने रूढ़िवादी रीति-रिवाजों के अनुकरण की बजाय विवेकपूर्ण शासन पर तथा हर बात को तर्क और विवेक की कसौटी पर कसने पर बल दिया। उन्होंने चर्च की धार्मिक सत्ता और राज्य की निरंकुश सत्ता पर प्रहार किया और परम्परा पर आधारित सामाजिक व्यवस्था को कमजोर कर दिया। वाल्तेयर और रूसो के लेखनों से प्रभावित होकर पाठक एक नवीन, आलोचनात्मक और तार्किक दृष्टिकोण से संसार को देखने लगे थे। अब पाठक लोग हर बात पर प्रश्न उठाने लगे।
(2) वाद-विवाद-संवाद की नवीन संस्कृति का प्रसार–छपाई ने वाद-विवाद-संवाद की नयी संस्कृति को जन्म दिया। अब समस्त प्राचीन मूल्यों, सभ्यताओं और नियमों पर आम जनता के बीच वाद-विवाद होने लगे और उनका पुनर्मूल्यांकन किया जाने लगा। इसके परिणामस्वरूप सामाजिक क्रान्ति के विचारों को बढ़ावा मिला।
(3) राजशाही और उसकी नैतिकता पर व्यंग्य करने वाले साहित्य का प्रकाशन-1780 के दशक तक राजशाही और उसकी नैतिकता का उपहास करने वाले विपुल साहित्य का प्रकाशन हो चुका था। इस साहित्य ने सामाजिक व्यवस्था की त्रुटियों और बुराइयों पर प्रश्न उठाए। ऐसे साहित्य ने लोगों को राजतन्त्र के विरुद्ध विद्रोह करने के लिए उत्तेजित किया।