आज हमारे देश के आदिवासी, दलित, मुसलमान, औरतें एवं अन्य हाशियायी समूह यह दलील दे रहे हैं कि एक लोकतांत्रिक देश का नागरिक होने के नाते उन्हें भी - बराबर के अधिकार मिलने चाहिए। उनमें से बहुत सारे - लोगों ने अपनी चिंताओं को दूर करने के लिए संविधान का भी सहारा लिया है।