ऋण के औपचारिक स्रोतों में बैंक, सहकारी समितियों, स्वयं सहायता समूह आदि को शामिल किया-
ग्रामीण क्षेत्रों में व्यापारिक बैंकों एवं सहकारी समितियों की संख्या में और अधिक वृद्धि की जानी चाहिए।
बैंकों और सहकारी समितियों इत्यादि से ग्रामीण निर्धनों को मिलने वाले औपचारिक ऋणों का हिस्सा बढ़ाना चाहिए।
ग्रामीणों को अधिक से अधिक स्वयं सहायता समूह बनाने हेतु प्रोत्साहित करना चाहिए तथा सरकार को भी इन स्वयं सहायता समूहों की स्थापना में अपने योगदान में वृद्धि करनी चाहिए।