भारत में उत्पादित होने वाली बारीक कपास का यूरोपीय देशों को निर्यात किया जाता था। दूसरी ओर औद्योगीकरण के बाद ब्रिटेन में कपास का उत्पादन बढ़ने लगा था। अतः ब्रिटेन के उद्योगपतियों के दबाव में ब्रिटिश सरकार ने आयातित कपड़ों पर सीमाशुल्क लगा दिए। परिणामस्वरूप ब्रिटेन में बारीक भारतीय कपास का आयात कम होने लगा।
इसी प्रकार भारतीय कपड़ों को अन्य अन्तर्राष्ट्रीय बाजारों में कड़ी प्रतिस्पर्धा का सामना करना पड़ा। फलस्वरूप भारतीय कपड़े के निर्यात में निरन्तर गिरावट आती गई, सन् 1800 के आसपास निर्यात में सूती कपड़े का प्रतिशत 30 था जो 1870 में घटकर केवल 3 प्रतिशत रह गया।