एक इलेक्ट्रान, हाइड्रोजन परमाणु की प्रथम उत्तेजित अवस्था से उसकी निम्नतम अवस्था में संक्रमण करता है। इससे उत्सर्जित एकवर्णी विकिरण किसी प्रकाश सुग्राही पदार्थ को किरणित करता है। इसका निरोधी विभव $3.57 V$ मापा गया है। इस पदार्थ की देहली आवृत्ति है :
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किसी प्रकाशवैन्युत पृप्ठ को क्रमश: $\lambda$ तथा $\frac{\lambda}{2}$ तरंगदैर्ध्य के एकवर्णी प्रकाश से प्रदीप्त किया जाता है। यदि उत्सर्जित प्रकाश विद्युत इललोक्ट्रॉनो की अधिकतम गतिज ऊर्जा का मान, दूसरी दशा में पहली दशा से $3$ गुना है, तो इस पृष्ट के पदार्थ का कार्य फलन है:
$( h =$ प्लांक स्थिरांक$, c =$ प्रकाश का वेग$)$
एक प्रकाश वैद्युत सैल का कैथोड बदलने से उसका कार्य फलन $W _1$ से $W _2$ बदल जाता है $\left( W _2> W _1\right)$ ) बिना किसी परिवर्तन के पहले धारा का मान $I _1$ तथा बाद में $I _2$ है तो $\left(\right.$ माना $h v> W _2$ )
किसी धातु का कार्य फलन $1.8 eV$ है। इससे प्रकाश विद्युत उत्सर्जन में उत्पन्न इलेक्ट्रॉनों की अधिकतम ऊर्जा $0.5 eV$ है। इसका संगत निरोधी (अंतक) विभव होगा:
इस चित्र में एक प्रकाश सुक्रीय तल पर तीन विभिन्न विकिरणों के लिये प्रकाशीय धारा और ऐनोड विभव के बीच आरेखों को दिखाया गया है। निम्न कथनों में से किस को यथार्थ माना जायेगा?