गरीब पाठकों को पुस्तकें उपलब्ध कराने के लिए अग्रलिखित प्रयास किये गये-
19वीं सदी के मद्रासी शहरों में गरीब लोगों को खरीदने हेतु काफी सस्ती किताबें चौक-चौराहों पर बेची जा रही थीं।
सार्वजनिक पुस्तकालय खुलने लगे जो शहरों और कस्बों में होते थे। गरीब लोग यहाँ पुस्तकें पढ़ सकते थे।
जातीय और वर्गीय शोषण का रिश्ता समझाने की दृष्टि से कानपुर के एक मजदूर काशी बाबा ने एक लेख लिखा और उसे प्रकाशित करवाया। इसी प्रकार एक और मजदूर का लेखन 'सच्ची कविताएँ' नामक एक संग्रह में छापा गया। गरीबों में पुस्तकें पढ़ने की ललक बढ़ी।
बंगलौर के सूती मिल-मजदूरों ने खुद को शिक्षित करने के ख्याल से पुस्तकालय बनाया, जिसकी प्रेरणा उन्हें बम्बई के मिल-मजदूरों से मिली थी।
समाज सुधारकों ने भी मजदूरों के प्रयासों को संरक्षण दिया।