गुरुत्वीय क्षेत्र की आवश्यकता ऊष्मा चालन के किस प्रकार में उपयोगी है?
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(c) संवहन में तापप्रवणता ऊर्ध्वाधर दिशा में होती है । अतः गुरुत्वाकर्षण कार्य करेगा।
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दो छड़ समान लम्बाई, ऊष्मा चालकता $K _1, K _2$, क्षेत्रफल $A _1, A _2$ तथा विशिष्ट ऊष्मा $S _1, S _2$ है । दोनों सिरों के ताप $T _1$ व $T _2$ है। साम्वास्था में ऊष्मा प्रवाह की दर है:
$1227^{\circ} C$ पर एक कृष्ण पिण्ड विकिरण उत्सर्जन करता है जिसमें अधिकतम विकिरण फ्लक्स घनत्व $5000 \mathring A $ के तरंगदैर्ध्य पर होता है। यदि इस पिण्ड का ताप $1000^{\circ} C$ से बढ़ा दिया जाए, तो अधिकतम विकिरण फ्लक्स घनत्व देखा जाएगा
एक संयुक्त स्लैब $($slab$)$ समान मोटाई के दो विभिन्न पदार्थो से मिलकर बना है, जिनकी ऊष्मा चालकताएँ क्रमशः $K$ व $2 K$ हैं तो स्लैब की तुल्य ऊष्मीय चालकता होगी:
यह मानते हुए कि सूर्य $r$ त्रिज्या का गोलाकार बाहरी तल रखता है और तापमान $t^{\circ} C$ पर एक कृष्ण पिंड की तरह प्रकीर्णन करता है, सूर्य केन्द्र से $R$ दूरी पर आपतित किरणों से लम्ब दिशा में किसी एक मात्रक तल द्वारा प्राप्त की गई शक्ति होगी-
लम्बाई $L$ और एकसमान परिच्छेद क्षेत्रफल $A$ की एक छड़ के दो सिरों को दो तापमानों $T _1$ और $T _2$ ( जबकि $T_1>T_2$ है) पर निरन्तर रखा जा रहा है। स्थिर अवस्था में छड़ में से ऊष्मा के स्थानान्तरण की दर, $\frac{ dQ }{ dt }$ होगी:-
किसी तारे की त्रिज्या $r$ है। यदि इसकी बाहरी सतह $TK$ ताप की कृष्णिका की भाँति ऊष्मा विकसित करती है तो, इसके केन्द्र से $R$ दूरी पर, प्रति इकाई क्षेत्रफल द्वारा, आपतन की दिशा के लम्बवत्, प्राप्त कुल विकिरण ऊर्जा है