अधिकतर विकासशील देशों को पश्चिमी देशों की अर्थव्यवस्थाओं की तीव्र प्रगति से कोई लाभ नहीं हुआ। अतः उन्होंने एक नई अन्तर्राष्ट्रीय आर्थिक प्रणाली की स्थापना के लिए आवाज उठाई और वे समूह 77 (जी77) के रूप में संगठित हो गए। वे एक ऐसी व्यवस्था स्थापित करना चाहते थे जिसमें उन्हें अपने संसाधनों पर सही अर्थों में नियंत्रण मिल सके, जिसमें उन्हें विकास के लिए अधिक सहायता मिले, कच्चे माल के सही दाम मिलें और अपने तैयार मालों को विकसित देशों के बाजारों में बेचने के लिए उचित पहुँच मिले।