जनराष्ट्रवाद- जनराष्ट्रवाद से आशय है- किसी देश की आम जनता में इस भावना का उदय होना कि यह देश यहाँ रहने वाले किसी भी वर्ग, रंग, जाति, पंथ, भाषा या लिंग वाले सभी लोगों का घर है। यह देश और इसके सारे संसाधन और इसकी सारी व्यवस्था उन सभी के लिए है। भारत की जनता को इस जवाब के साथ जब यह अहसास भी सामने आया कि अंग्रेज भारत के संसाधनों व यहाँ के निवासी लोगों की जिंदगी पर कब्जा जमाए हुए हैं और जब तक यह नियंत्रण खत्म नहीं होता, भारत यहाँ के लोगों का, भारतीयों का नहीं हो सकता। इस चेतना को 1870 और 1880 के दशक में बने राजनीतिक संगठनों ने और गहरा किया तथा 1885 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना हुई। उसने सभी भारतीय लोगों के हक में और उनकी ओर से बोलने का संकल्प व्यक्त किया तथा भारतीयों के लिए अनेक माँगों को उठाते हुए अंग्रेज सरकार के शोषण के विरुद्ध तथा स्वतंत्रता के लिए आंदोलन चलाए।
1919 के बाद, अंग्रेजों के खिलाफ चल रहा यह संघर्ष धीरे-धीरे एक जन आंदोलन में बदलने लगा। किसान, आदिवासी, विद्यार्थी तथा महिलाएँ भी बड़ी संख्या में इस आंदोलन से जुड़ते गए। बीस के दशक से मजदूर और व्यावसायिक समूह भी कांग्रेस को सक्रिय समर्थन देने लगे। प्रथम विश्व युद्ध के दौरान भारतीय उद्योगों का विस्तार हुआ तथा भारतीय व्यावसायिक समूह विकास के लिए और अधिक अवसरों की माँग करने लगे। युद्ध से लौटे भारतीय सिपाही भी भारत में औपनिवेशिक शासन का विरोध करने लगे। 1917 में रूसी क्रांति की घटना के समाचारों ने किसानों और मजदूरों में भारतीय राष्ट्रवाद की प्रेरणा को बढ़ाया।
इस प्रकार भारत की समग्र जनता में अंग्रेजी शासन के विरुद्ध संघर्ष की प्रेरणा पैदा हुई एवं समूची जनता में भारतीय राष्ट्रवाद की भावना जागृत हुई और जनराष्ट्रवाद का उदय हुआ।