मृदा अपरदन का अर्थ- मृदा के कटाव और उसके बहाव की प्रक्रिया को मृदा अपरदन कहा जाता है। मृदा अपरदन के प्रकार-मृदा अपरदन के प्रकार निम्नलिखित हैं-
उत्खात भूमि-प्रवाहित जल मृत्तिकायुक्त मृदाओं को काटते हुए गहरी वाहिकाएँ बनाता है जिनको अवनलिकाएँ कहते हैं। इस प्रकार की भूमि जुताई के अयोग्य हो जाती है जिसे उत्खात भूमि के नाम से जाना जाता है।
चादर अपरदन-अनेक बार जल विस्तृत क्षेत्र को ढके हुए ढाल के साथ नीचे की तरफ प्रवाहित होता है, जिससे उस क्षेत्र की ऊपरी मृदा घुलकर जल के साथ बह जाती है, इसे चादर अपरदन कहते हैं।
पवन अपरदन-पवन द्वारा मैदान अथवा ढालू क्षेत्र से मृदा को उड़ा ले जाने की प्रक्रिया को पवन अपरदन कहा जाता है।
कृषि के गलत तरीके अपनाना- कृषि के गलत तरीकों से भी मृदा अपरदन होता है।
मृदा संरक्षण-मृदा संरक्षण के लिए निम्नलिखित उपाय किए जाने चाहिए-
समोच्च जुताई-ढाल वाली भूमि पर समोच्च रेखाओं के समानान्तर हल चलाने से ढाल के साथ जल बहाव की गति घटती जाती हैं।
सीढ़ीदार कृषि-ढाल वाली भूमि पर सोपान बनाए जा सकते हैं। सोपान कृषि अपरदन को नियंत्रित करती है। पश्चिमी और मध्य हिमालय में सोपान अथवा सीढ़ीदार कृषि काफी विकसित है।
पट्टी कृषि-बड़े खेतों को पट्टियों में विभाजित किया जाता है। फसलों के बीच में घास की पट्टियाँ उगाई जाती हैं। ये पवनों के द्वारा जनित बल को कमजोर करती हैं। इस तरीके को पट्टी कृषि कहते हैं।
पेड़ों को कतारों में लगाना-पेड़ों को कतारों में लगा कर रक्षक मेखला बनाना भी पवनों की गति कम करता है। इन रक्षक पट्टियों का पश्चिमी भारत में रेत के टीलों के स्थायीकरण में महत्त्वपूर्ण योगदान रहा है।