विकास के स्तर के आधार पर संसाधनों को निम्न प्रकारों में बाँटा जा सकता है
(1) संभावी संसाधन-वे संसाधन जो किसी प्रदेश में विद्यमान होते हैं परन्तु इनका उपयोग नहीं किया गया है, संभावी संसाधन कहलाते हैं। जैसे-भारत के पश्चिमी भाग, विशेषकर राजस्थान और गुजरात में पवन और सौर ऊर्जा संसाधनों की अपार संभावना है, परन्तु इनका अभी तक सही ढंग से उपयोग नहीं हुआ है।
(2) विकसित संसाधन-यह वे संसाधन होते हैं जिनका सर्वेक्षण किया जा चुका है और उनके उपयोग की गुणवत्ता और मात्रा भी निर्धारित की जा चुकी है। विकसित संसाधन प्रौद्योगिकी और उनकी संभाव्यता के स्तर पर निर्भर करते हैं।
(3) भण्डार-पर्यावरण में उपलब्ध वे पदार्थ जो मनुष्य की आवश्यकताओं की पूर्ति कर सकते हैं परन्तु उनकी प्राप्ति की कोई उपयुक्त प्रौद्योगिकी अभी उपलब्ध नहीं है, भण्डार में शामिल हैं। जैसे-जल दो ज्वलनशील गैसों, हाइड्रोजन और ऑक्सीजन का यौगिक है तथा यह ऊर्जा का मुख्य स्रोत बन सकता है। परन्तु इस उद्देश्य से, इनका प्रयोग करने के लिए हमारे पास आवश्यक तकनीकी ज्ञान नहीं है।
(4) संचित कोष-भंडार का वह हिस्सा, जिन्हें उपलब्ध तकनीकी ज्ञान की सहायता से प्रयोग में लाया जा सकता है, परन्तु इनका उपयोग अभी आरम्भ नहीं हुआ है, संचित कोष कहलाता है। इनका उपयोग भविष्य में आवश्यकता पूर्ति के लिए किया जा सकता है। नदी जल, बाँधों में जल, वन आदि संचित कोष हैं जिनका भविष्य में अधिकाधिक उपयोग किया जा सकता है।