इसे निम्न प्रकार स्पष्ट किया जा सकता है-
(1) किसी क्षेत्र के विकास के लिए संसाधनों की उपलब्धता एक आवश्यक शर्त है परंतु प्रौद्योगिकी और संस्थाओं में तदनुरूपी परिवर्तनों के अभाव में मात्र संसाधनों की उपलब्धता से ही विकास संभव नहीं है।
(2) देश में बहुत से क्षेत्र हैं जो संसाधन समृद्ध होते हुए भी आर्थिक रूप से पिछड़े प्रदेशों की गिनती में आते हैं क्योंकि वहाँ प्रौद्योगिकी तथा तदनुरूप संस्थाओं का अभाव है। इसके विपरीत कुछ ऐसे प्रदेश भी हैं जो संसाधनों की कमी होते हुए भी उन्नत प्रौद्योगिकी विकास के कारण आर्थिक रूप से विकसित हैं।
(3) उपनिवेशन का इतिहास हमें बताता है कि उपनिवेशकारी देशों ने बेहतर प्रौद्योगिकी के सहारे उपनिवेशों के संसाधनों का शोषण किया तथा उन पर अपना आधिपत्य स्थापित किया।
अतः संसाधन किसी प्रदेश के विकास में तभी योगदान दे सकते हैं, जब वहाँ उपयुक्त प्रौद्योगिकी विकास और संस्थागत परिवर्तन किए जाएँ। उपनिवेशन के विभिन्न चरणों में भारत ने भी इन सबका अनुभव किया है। अतः विकास सामान्यतः तथा संसाधन विकास लोगों के मुख्यतः संसाधनों की उपलब्धता पर ही आधारित नहीं होता बल्कि इसमें प्रौद्योगिकी, मानव संसाधन की गुणवत्ता और ऐतिहासिक अनुभव का भी योगदान रहता है।