नामांकित परिपथ आरेख की सहायता से किसी $AC$ जनित्र की कार्यविधि का वर्णन कीजिए। इसे $DC$ जनित्र में परिवर्तित करने के लिए इस व्यवस्था में क्या परिवर्तन किए जाने चाहिए?
examplar-31
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निर्माण:
विद्युत जनित्र में $\text{ABCD}$ एक घूर्णी आयताकार कुण्डली है जिसे किसी स्थायी चुम्बक के दो ध्रुवों के बीच रखा जाता है।
कुण्डली की भुजा $AB$ वलय $R_1$ से तथा भुजा $CD$ वलय $R_2$ से संयोजित होती हैं।
$R_1$ तथा $R_2$ भीतर से विद्युतरोधी होते हैं तथा धुरी से जुड़े होते हैं।
दो स्थिर चालक ब्रुश $B_1$ तथा $B_2$ को पृथक्-पृथक रूप से क्रमशः वलयों $R_1$ तथा $R_2$ पर दबाकर रखा जाता है।
दोनों ब्रुशों के बाहरी सिरे, बाहरी परिपथ में विद्युत धारा प्रवाह को दर्शाने के लिए गैल्वेनोमीटर से संयोजित होते हैं।
$AC$ जनित्र की क्रियाविधि$-$
$AC$ जनित्र फ्लेमिंग के दक्षिण-हस्त नियम के अनुसार कार्य करता है।
जब कुण्डली चुम्बकीय क्षेत्र में घूर्णन करती है तब उसमें प्रेरित धारा उत्पन्न होती है।
मान लीजिए कि संलग्न चित्र में कुण्डली दक्षिणावर्त घूर्णन कर रही है। इसका अर्थ है कि $AB$ ऊपर की ओर तथा $CD$ नीचे की ओर गति कर रही है।
जब $AB$ ऊपर की ओर गति करती है जो उसमें $A$ से $B$ की ओर धारा प्रवाहित होती है।
जब $CD$ नीचे की ओर गति करती है, तो उसमें $C$ से $D$ की ओर धारा प्रवाहित होती है।
एक अर्द्धघूर्णन के पश्चात् $AB$ तथा $CD$ की सापेक्षिक स्थितियाँ परिवर्तित हो जाती हैं। अब, $CD$ ऊपर की ओर गति करती है। अतः उसमें $D$ से $C$ की ओर धारा प्रवाहित होती है। इसी प्रकार, $AB$ नीचे की ओर गति करती है। अतः उसमें $B$ से $A$ की ओर धारा प्रवाहित होती है।
अत: इस जनित्र में प्रत्येक अर्द्धघूर्णन के पश्चात् धारा की दिशा परिवर्तित होती है। अर्थात् प्रत्यावर्ती धारा उत्पन्न होती है।
$AC$ जनित्र का $DC$ जनित्र में परिवर्तन$-$
इसके लिए, दो पृथक् वलयों के स्थान पर विभक्त वलय दिक्परिवर्तक का उपयोग किया जाता है, जो एक दिशा में धारा की दिशा बनाए रखता है तथा इस प्रकार $AC$ जनित्र $DC$ जनित्र में परिवर्तित हो जाता है।
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किसी वृत्ताकार पाश में प्रवाहित धारा के कारण चुंबकीय क्षेत्र का आरेख खींचिए। ऐसा क्यों है कि n फेरों की किसी वृत्ताकार कुंडली से किसी बिंदु पर उत्पन्न चुंबकीय क्षेत्र एक फेरे द्वारा उसी बिंदु पर उत्पन्न क्षेत्र का n गुना होता है।
किसी भी विद्युत साधित्र के साथ श्रेणी क्रम में उपयोग किए जाने वाले फ्यूज़ की क्या भूमिका होती है? किसी निर्धारित अनुमतांक के फ्यूज़ को अधिक अनुमतांक के फ्यूज़ द्वारा प्रतिस्थापित क्यों नहीं करना चाहिए?
वैद्युत चुंबकीय प्रेरण की परिघटना स्पष्ट कीजिए। यह दर्शाने के लिए किसी प्रयोग का वर्णन कीजिए कि जब किसी बंद पाश से गुजरने वाले बाह्य चुंबकीय क्षेत्र में कमी अथवा वृद्धि होती है, तो उस पाश में विद्युतधारा प्रवाहित होती है।
उत्तर दक्षिण की ओर संकेत करने वाली चुंबकीय दिक्सूची, जिसके समीप कोई चुंबक नहीं है, के निकट कोई छड़ चुंबक अथवा धारावाही पाश लाने पर, विक्षेपित क्यों हो जाती है? चुंबकीय क्षेत्र रेखाओं की परिकल्पना के कुछ प्रमुख लक्षणों का वर्णन कीजिए।
उस क्रियाकलाप का वर्णन कीजिए जो यह दर्शाता है कि किसी चुंबकीय क्षेत्र में स्थित कोई धारावाही चालक एक बल अनुभव करता है जो उसकी लंबाई तथा बाह्य चुंबकीय क्षेत्र के लंबवत् होता है। फ्लेमिंग का वामहस्त नियम किसी धारावाही चालक पर लगने वाले बल की दिशा ज्ञात करने में हमारी सहायता किस प्रकार करता है? स्पष्ट कीजिए।
नामांकित परिपथ आरेख की सहायता से किसी सीधे लंबे धारावाही चालक तार के चारों ओर की चुंबकीय क्षेत्र रेखाओं के पैटर्न की व्याख्या कीजिए। किसी धारावाही चालक से संबद्ध चुंबकीय क्षेत्र की दिशा ज्ञात करने में दक्षिण-हस्त अंगुष्ठ नियम किस प्रकार उपयोगी है?
सामान्य घरेलू परिपथों को दर्शाने वाला कोई उचित व्यवस्था आरेख खींचकर फ्यूज़ के महत्व का वर्णन कीजिए। ऐसा क्यों है कि किसी जले हुए फ्यूज़ का प्रतिस्थापन सर्वसम अनुमतांक के अन्य फ्यूज़ द्वारा ही किया जाना चाहिए?