1920 के दशक में आन्ध्र प्रदेश की गुडेम पहाड़ियों में एक उग्र गुरिल्ला आन्दोलन फैल गया। ब्रिटिश सरकार ने बड़े-बड़े जंगलों में आदिवासियों के प्रवेश होने पर प्रतिबन्ध लगा दिया था। वे इन जंगलों में न तो अपने पशु चरा सकते थे, न ही जलाने के लिए लकड़ी और फल बीन सकते थे। इससे आदिवासियों में तीव्र आक्रोश व्याप्त था। जब सरकार ने उन्हें सड़कों के निर्माण के लिए बेगार करने पर विवश किया, तो उन्होंने विद्रोह कर दिया। आदिवासी किसानों का नेतृत्व अल्लूरी सीताराम राजू ने किया। राजू गाँधीजी की महानता के गुण गाता था। लेकिन उसका कहना था कि भारत अहिंसा के बल पर नहीं, बल्कि केवल बल प्रयोग के द्वारा ही स्वतन्त्र हो सकता है। अतः आदिवासियों ने पुलिस थानों पर आक्रमण किया। 1924 में राजू को फाँसी दे दी गई।