देश को एकजुट करने के लिए गाँधीजी ने नमक को एक प्रभावशाली प्रतीक माना। 31 जनवरी, 1930 को उन्होंने वायसराय लार्ड इरविन को एक पत्र लिखा जिसमें उन्होंने 11 माँगों का उल्लेख किया। गाँधीजी इन मांगों के द्वारा समाज के सभी वर्गों को अपने साथ जोड़ना चाहते थे ताकि सभी उनके आन्दोलन में शामिल हो सकें । इनमें सबसे महत्त्वपूर्ण माँग नमक कर को समाप्त करने के बारे में थी। नमक का अमीर-गरीब सभी प्रयोग करते थे। यह भोजन का एक अभिन्न हिस्सा था। इसलिए गाँधीजी नमक कर को ब्रिटिश शासन का सबसे दमनकारी पहलू मानते थे। अतः जब ब्रिटिश सरकार ने उनकी माँगें नहीं मानीं, तो मार्च, 1930 में गाँधीजी ने साबरमती आश्रम से नमक कानून तोड़ने के लिए दांडी नामक स्थान की ओर प्रस्थान किया। 6 अप्रेल को दांडी पहुँचकर उन्होंने नमक बनाकर नमक कानून भंग किया।