भारत के कुछ प्रमुख मुस्लिम राजनीतिक संगठनों ने सविनय अवज्ञा आन्दोलन में कोई विशेष उत्साह नहीं दिखाया। असहयोग आन्दोलन के शान्त पड़ जाने के बाद मुसलमानों का एक बड़ा भाग कांग्रेस से कटा हुआ महसूस करने लगा। हिन्दू-मुसलमानों के बीच सम्बन्ध खराब होने से दोनों समुदाय उग्र धार्मिक जुलूस निकालने लगे।
इससे कई नगरों में हिन्दू-मुस्लिम साम्प्रदायिक दंगे हुए। यद्यपि मुस्लिम लीग ने पृथक निर्वाचन क्षेत्रों की व्यवस्था का समर्थन किया था परन्तु मुस्लिम लीग के प्रमुख नेता जिन्ना ने घोषित किया कि केन्द्रीय सभा में मुसलमानों को आरक्षित सीटें देने तथा मुस्लिम बहुल प्रान्तों में मुसलमानों को आबादी के अनुपात में प्रतिनिधित्व देने पर वह पृथक निर्वाचिका की माँग छोड़ देंगे। परन्तु कुछ समय बाद ही जिन्ना ने इस पर जोर नहीं दिया।