हमारे दृष्टिकोण से वस्तु विनिमय प्रणाली और मौद्रिक विनिमय प्रणाली में, मौद्रिक प्रणाली श्रेष्ठ है, क्योंकि-
(1) मौद्रिक प्रणाली में जिस व्यक्ति के पास मुद्रा है, वह इसका विनिमय किसी भी वस्तु या सेवा खरीदने के लिए आसानी से कर सकता है। इसलिए हर कोई मुद्रा के रूप में भुगतान लेना पसन्द करता है, फिर उस मुद्रा का इस्तेमाल अपनी जरूरत की चीजें खरीदने के लिए करता है। उदाहरण के लिए एक जूता निर्माता बाजार में जूता बेचकर गेहूँ खरीदना चाहता है, तो वह जूतों के बदले मुद्रा प्राप्त करेगा और फिर इस मुद्रा का इस्तेमाल गेहूँ खरीदने के लिए करेगा।
(2) दूसरी तरफ वस्तु विनिमय प्रणाली में, जहाँ मुद्रा का उपयोग किये बिना वस्तुओं का विनिमय होता है, वहाँ आवश्यकताओं का दोहरा संयोग होना आवश्यक है। अर्थात् दोनों पक्ष एक-दूसरे से चीजें खरीदने व बेचने पर सहमति रखते हों। उदाहरण के लिए वस्तु विनिमय प्रणाली में जूता व्यवसायी को, जूतों के बदले गेहूँ खरीदने के लिए गेहूँ उगाने वाले ऐसे किसान को खोजना पड़ता है जो गेहूँ के बदले जूते खरीदना चाहता हो। इससे विनिमय में दोहरे संयोग के लिए बड़ी कठिनाई होती है।
(3) मुद्रा व्यवस्था में मुद्रा महत्त्वपूर्ण मध्यवर्ती भूमिका प्रदान करके आवश्यकताओं के दोहरे संयोग की जरूरत को खत्म कर देती है और विनिमय को आसान कर देती है।
(4) मौद्रिक प्रणाली में वस्तुओं का संग्रह मुद्रा के रूप में आसानी से किया जा सकता है। अतः स्पष्ट है कि विनिमय की मौद्रिक प्रणाली वस्तु-विनिमय प्रणाली से श्रेष्ठ है।