शहरी गरीबों व अमीरों के ऋणों में औपचारिक व अनौपचारिक साख के योगदान की तुलना-
औपचारिक ऋणदाताओं की तुलना में अनौपचारिक क्षेत्रक के ज्यादातर ऋणदाता कहीं अधिक ब्याज वसूल करते हैं। इसलिए अनौपचारिक स्रोतों से ऋण लेना कर्ज लेने वाले को अधिक महँगा पड़ता है।
शहरी क्षेत्र के निर्धन परिवारों की कर्जो की 85 प्रतिशत जरूरतें अनौपचारिक स्रोतों से पूरी होती हैं, जबकि शहरी अमीरों के केवल 10 प्रतिशत कर्ज अनौपचारिक स्रोतों से पूरे होते हैं।
शहरी क्षेत्र के निर्धन परिवारों की कर्ज की केवल 15 प्रतिशत जरूरतें ही औपचारिक स्रोतों से पूरी होती हैं जबकि शहरी अमीरों की 90 प्रतिशत कर्जे की जरूरतें औपचारिक स्रोतों से पूरी होती हैं।
औपचारिक क्षेत्र के ऋणों के सृजन में भागीदारी बढ़ाने हेतु सुझाव-
गरीबों को, विशेषकर महिलाओं को छोटे-छोटे स्वयं सहायता समूहों में संगठित करके और उनकी बचत पूँजी को एकत्रित करके, एक-दो वर्ष बाद यह समूह बैंक से ऋण लेने के योग्य हो जाता है। इस प्रकार यह समूह बैंक से ऋण लेकर उसे अपने समूह के सदस्यों को उचित ब्याज पर कर्ज दे सकता है।
औपचारिक क्षेत्र के कुल ऋणों में वृद्धि हो तथा बैंकों व सहकारी समितियों इत्यादि से गरीबों को मिलने वाले औपचारिक ऋण का हिस्सा बढ़ाना चाहिए।