भारतीय औद्योगिक क्षेत्रों में मजदूरों का आना-
(1) मजदरों का आस-पास के जिलों से आना-अधिकतर भारतीय औद्योगिक क्षेत्रों में मजदूर आस-पास वे. जिलों से आते थे। जिन मजदूरों एवं कारीगरों को गाँवों में काम नहीं मिलता था, वे औद्योगिक केन्द्रों की ओर जाने लगते थे। 1911 में मुम्बई में सूती कपड़ा उद्योग में काम करने वाले 50 प्रतिशत से अधिक मजदूर निकट के रत्नागिरी जिले से आए थे। कानपुर की मिलों में काम करने वाले अधिकतर मजदूर कानपुर जिले के ही गाँवों से आते थे।
(2) दूर-दूर के स्थानों से भी मजदूरों का आना-जब कारखानों में काम बढ़ जाता था, तो इसका समाचार सुनकर दूर-दूर के स्थानों से भी मजदूर आने लगते थे। उदाहरण के लिए, संयुक्त प्रान्त के लोग मुम्बई की कपड़ा-मिलों में तथा कोलकाता की जूट मिलों में काम करने के लिए पहुँचने लग गए थे।
काम मिलने के बारे में कठिनाइयाँ-
(1) कारखानों में नौकरी पाना कठिन होना-कारखानों में नौकरी पाना सदैव ही कठिन था। यद्यपि मिलों की संख्या बढ़ने के साथ-साथ मजदूरों की मांग भी बढ़ रही थी, फिर भी कारखानों में नौकरी पाना कठिन था। इसका कारण यह था कि रोजगार चाहने वालों की संख्या रोजगारों की तुलना में सदैव अधिक रहती थी। मिलों में प्रवेश भी निषिद्ध था।
(2) मजदूरों की भर्ती के लिए एक जॉबर रखना उद्योगपति नए मजदूरों की भता के लिए प्रायः एक जॉबर रखते थे। जॉबर कोई पुराना और विश्वस्त कर्मचारी होता था। वह अपने गाँव से लोगों को लाता था तथा उन्हें काम देने का आश्वासन देता था। वह उन्हें शहर में आबाद होने के लिए सहायता देता था और मुसीबत में पैसे से सहायता करता था। कालान्तर में जॉबर सहायता के बदले पैसे व उपहार की माँग करने लगे और मजदूरों के जीवन को नियन्त्रित करने लगे।