"प्रथम विश्व युद्ध के बाद भी भारत में लघु उद्योगों की बहुलता थी।" व्याख्या कीजिए।
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प्रथम विश्व युद्ध के बाद भी भारत में लघु उद्योगों की बहुलता-यद्यपि प्रथम विश्व युद्ध के पश्चात् फैक्ट्री उद्योगों में निरन्तर वृद्धि हुई। अधिकांश उद्योग बंगाल और मुम्बई में स्थित थे। शेष सम्पूर्ण भारत में छोटे स्तर के उद्योग ही थे। पंजीकृत फैक्ट्रियों में कुल औद्योगिक श्रम-शक्ति का एक बहुत छोटा भाग ही काम करता था। यह संख्या 1911 में 5 प्रतिशत तथा 1931 में 10 प्रतिशत थी। शेष मजदूर गली-मोहल्लों में स्थित छोटी-छोटी वर्कशाप तथा घरेलू इकाइयों में काम करते थे।
लघु उद्योगों की बहुलता के कारण-लघु उद्योगों की बहुलता के निम्नलिखित कारण थे-
(1) तकनीकी परिवर्तन-लघु उद्योगों की बहुलता के पीछे आंशिक रूप से तकनीकी परिवर्तनों का हाथ था। यदि लागत में बहुत अधिक वृद्धि न हो और उत्पादन बढ़ सकता हो, तो हाथ से काम करने वालों को नई तकनीक अपनाने में कोई संकोच नहीं होता। इसलिए, बीसवीं सदी के दूसरे दशक तक बुनकर 'फ्लाई शटल' वाले करघों का प्रयोग करते थे। इससे कामगारों की क्षमता बढ़ी, उत्पादन में वृद्धि हुई और श्रम की माँग में कमी आई। 1941 तक भारत में 35 प्रतिशत से अधिक हथकरघों में फ्लाई शटल लगे होते थे। त्रावणकोर, मद्रास, मैसूर, कोचीन, बंगाल आदि प्रदेशों में तो 70-80 प्रतिशत करघे फ्लाई शटल वाले थे।
(2) छोटे-छोटे सुधार- इसके अतिरिक्त भी अनेक छोटे-छोटे सुधार किए गए जिनसे बुनकरों को अपनी उत्पादकता बढ़ाने तथा मिलों से मुकाबला करने में सहायता मिली।
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