18वीं सदी के अन्त तक कुछ उद्यमियों ने भारत में उद्योग स्थापित करने का निश्चय कर लिया। ऐसे प्रमुख उद्यमी निम्नलिखित थे-
(1) द्वारकानाथ टैगोर-बंगाल के द्वारकानाथ टैगोर ने चीन के साथ व्यापार में खूब धन कमाया था। अतः वे अपना धन उद्योगों में निवेश करने लगे। 1830-40 के दशकों में उन्होंने 6 संयुक्त उद्यम कम्पनियाँ स्थापित की थीं, परन्तु 1840 के दशक में आए व्यापक व्यावसायिक संकटों के कारण टैगोर के उद्योग भी समाप्त हो गए।
(2) डिनशॉ पेटिट तथा जमशेदजी नुसरवानजी टाटा-मुम्बई में डिनशॉ पेटिट तथा देश में विशाल औद्योगिक साम्राज्य स्थापित करने वाले जमशेदजी नुसरवानजी टाटा जैसे पारसियों ने आंशिक रूप से चीन को निर्यात करके तथा आंशिक रूप से इंग्लैण्ड को कच्ची कपास निर्यात करके खूब धन कमा लिया था।
(3) सेठ हुकुमचन्द मारवाड़ी व्यवसायी सेठ हुकुमचन्द ने भी चीन के साथ व्यापार करके पैसा कमा लिया था। उन्होंने 1917 में कोलकाता में देश की पहली जूट मिल स्थापित की।
(4) बिड़ला परिवार यही काम प्रसिद्ध उद्योगपति जी.डी. बिड़ला के पिता तथा दादा ने किया था।
(5) अन्य चीन के व्यापार के अतिरिक्त भारतीय उद्यमियों ने पूँजी इकट्ठा करने के लिए अन्य व्यापारिक स्रोतों का उपयोग किया। मद्रास के कुछ सौदागर बर्मा से व्यापार करते थे, जबकि कुछ अन्य व्यापारी मध्य-पूर्व व पूर्वी अफ्रीका से व्यापार करते थे। जब उन्हें उद्योगों में निवेश करने का अवसर मिला, तो उनमें से अनेक व्यापारियों ने फैक्ट्रियाँ स्थापित की।