भारत के साथ ब्रिटेन सदैव 'व्यापार अधिशेष' की अवस्था में रहता था। इससे तात्पर्य है कि आपसी व्यापार में सदैव ब्रिटेन को ही लाभ मिलता था। ब्रिटेन इस लाभ के सहारे दूसरे देशों के साथ होने वाले व्यापारिक घाटे की पूर्ति कर लेता था। ब्रिटेन के व्यापार से जो अधिशेष प्राप्त होता था उससे 'होम चार्जेज' (देसी खर्च) का निबटारा होता था। इसके अन्तर्गत ब्रिटिश अधिकारियों तथा व्यापारियों द्वारा अपने घर भेजी गई निजी रकम, भारतीय बाह्य कर्ज पर ब्याज तथा भारत में काम कर चुके ब्रिटिश अधिकारियों की पेंशन शामिल थी।