इन देशों को निम्नलिखित आर्थिक समस्याओं का सामना करना पड़ा-
सभी नवोदित राष्ट्र गरीबी और संसाधनों की कमी से जूझ रहे थे।
इन देशों की अर्थव्यवस्थाएँ और समाज अस्त-व्यस्त हो चुके थे।
इन नवोदित राष्ट्रों को अपनी जनता की निर्धनता तथा पिछड़ेपन को दूर करने के लिए ऐसे अन्तर्राष्ट्रीय संस्थानों की सहायता लेनी पड़ी जिन पर भूतपूर्व औपनिवेशिक शक्तियों का ही प्रभुत्व था।
जो देश ब्रिटेन अथवा फ्रांस के उपनिवेश रह चुके थे, वहाँ की खनिज सम्पदा, जमीन आदि महत्वपूर्ण संसाधनों पर अभी भी ब्रिटिश तथा फ्रांसीसी कम्पनियों का ही नियन्त्रण था और वे वहाँ अपना प्रभुत्व बनाये रखने के लिए कटिबद्ध थीं।