भारत में भाषायी राज्यों का गठन-भारत एक बड़ा देश है। यहाँ अनेक भाषाएँ एवं बोलियाँ बोली जाती हैं। संविधान में भी 22 भाषाओं को अनुसूचित भाषा का दर्जा दिया गया है।
भारत में अनेक राज्यों का गठन भाषा के आधार पर किया गया है। आजादी के बाद भाषा के आधार पर प्रांतों का गठन हमारे देश की लोकतांत्रिक राजनीति के लिए पहली और एक कठिन परीक्षा थी। आजादी के वक्त से लेकर अब तक अनेक पुराने प्रांत गायब हो गए और कई नए प्रांत बनाए गए। कई प्रांतों की सीमाएँ, क्षेत्र और नाम बदल गए।
भाषा के आधार पर नए राज्यों को बनाने के लिए 1950 के दशक में भारत के कई पुराने राज्यों की सीमाएँ बदलीं। ऐसा यह सुनिश्चित करने के लिए किया गया कि एक भाषा बोलने वाले लोग एक राज्य में आ जाएँ।
इसके बाद कुछ अन्य राज्यों का गठन भाषा के आधार पर नहीं बल्कि संस्कृति, भूगोल अथवा जातीयताओं (एथनीसिटी) की विभिन्नता को रेखांकित करने और उन्हें आदर देने के लिए भी किया गया। इनमें नागालैंड, उत्तराखंड और झारखंड जैसे राज्य शामिल हैं।
भाषा के आधार पर राज्यों के गठन पर कई राष्ट्रीय नेताओं को डर था कि इससे देश टूट जाएगा। केंद्र सरकार ने इसी के चलते राज्यों का पुनर्गठन कुछ समय के लिए टाल दिया था। किन्तु आगे चलकर यह स्पष्ट हुआ कि भाषावार राज्य बनाने से देश ज्यादा एकीकृत और मजबूत हुआ। इससे प्रशासन भी पहले की अपेक्षा कहीं ज्यादा सुविधाजनक हो गया है।