भारत में केंद्र-राज्य संबंध-भारत में केंद्र-राज्य संबंधों में लगातार आये बदलावों के कारण व्यवहार में संघवाद बहुत मजबूत हुआ है और आज उनके बीच सत्ता की साझेदारी ज्यादा प्रभावी है।
सत्ता की साझेदारी की संवैधानिक व्यवस्था वास्तविकता में कैसा रूप लेगी यह ज्यादातर इस बात पर निर्भर करता है कि शासक दल और नेता किस तरह इस व्यवस्था का अनुसरण करते हैं। काफी समय तक हमारे यहाँ एक ही पार्टी का केंद्र और अधिकांश राज्यों में शासन रहा। इसका व्यावहारिक प्रभाव यह पड़ा कि राज्य सरकारों ने स्वायत्त संघीय इकाई के रूप में अपने अधिकारों का प्रयोग ही नहीं किया। इसके बाद जब केंद्र और राज्य में अलग-अलग दलों की सरकारें बनी तो केंद्र सरकार ने राज्यों के अधिकारों की अनदेखी करने की कोशिश की। उन दिनों में केंद्र सरकार अक्सर संवैधानिक प्रावधानों का दुरुपयोग करके विपक्षी दलों की राज्य सरकारों को भंग कर देती थी। यह संघवाद की भावना के प्रतिकूल काम था।
सन् 1990 के बाद से इस स्थिति. में कुछ सुधार आया। इस अवधि में देश के अनेक राज्यों में क्षेत्रीय दलों का उदय हुआ। इसी दौर में केंद्र में गठबंधन सरकारों की शुरुआत हुई। चूंकि किसी एक दल को लोकसभा में स्पष्ट बहुमत नहीं मिला इसलिए प्रमुख राष्ट्रीय पार्टियों को क्षेत्रीय दलों समेत अनेक पार्टियों का गठबंधन बनाकर सरकार बनानी पड़ी। इससे सत्ता में साझेदारी और राज्य सरकारों की स्वायत्तता का आदर करने की नई संस्कृति पनपी। इसी बीच सुप्रीम कोर्ट के एक बड़े फैसले से भी इस प्रक्रिया को बल मिला। इस फैसले के कारण राज्य सरकार को मनमाने ढंग से भंग करना केंद्र सरकार के लिए मुश्किल हो गया।
इस प्रकार आज संघीय व्यवस्था के तहत सत्ता की साझेदारी संविधान लागू होने के तत्काल बाद वाले दौर की। तुलना में ज्यादा प्रभावी है।