काली मृदा (रेगर मृदा) के क्षेत्र-काली मृदाएँ महाराष्ट्र, सौराष्ट्र, मालवा, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ के पठार पर पाई जाती हैं और दक्षिण-पूर्वी दिशा में गोदावरी और कृष्णा नदियों की घाटियों तक फैली हैं।
काली मृदा (रेगर मृदा) की विशेषताएँ-
काली मृदा बहुत बारीक कणों अर्थात् मृत्तिका से बनी है।
इसकी नमी धारण करने की क्षमता बहुत अधिक होती है।
काली मृदाएँ कैल्शियम कार्बोनेट, मैगनीशियम, पोटाश और चूने जैसे पौष्टिक तत्त्वों से परिपूर्ण होती हैं।
इनमें फास्फोरस की मात्रा कम होती है।
गर्म और शुष्क मौसम में इन मृदाओं में गहरी दरारें पड़ जाती हैं जिससे इनमें वायु का मिश्रण अच्छी तरह हो जाता है।
गीली होने पर ये मृदाएँ चिपचिपी हो जाती हैं।
काली मृदाएँ लावा जनक शैलों से बनी होती हैं।
इनका रंग काला होता है तथा इन्हें 'रेगर' मृदाएँ भी कहा जाता है।
काली मृदाएँ कपास की खेती के लिए बहुत अच्छी होती हैं।