इंग्लैण्ड में कारखानों का उदय-इंग्लैण्ड में सर्वप्रथम 1730 के दशक में कारखाने खुले। परन्तु उनकी संख्या में तीव्र गति से वृद्धि अठारहवीं सदी के अन्त में ही हुई।
उत्पादन-प्रक्रिया में परिवर्तन-इस वृद्धि से उत्पादन-प्रक्रिया में निम्नलिखित परिवर्तन हुए
(1) नवीन आविष्कार-अठारहवीं सदी में अनेक ऐसे आविष्कार हुए जिन्होंने उत्पादन प्रक्रिया (कार्डिंग, ऐंठना व कताई, लपेटने) के प्रत्येक चरण की कुशलता बढ़ा दी। प्रति मजदूर उत्पादन बढ़ गया और पहले की अपेक्षा अधिक सुदृढ़ धागों एवं रेशों का उत्पादन होने लगा। इसके बाद रिचर्ड आर्कराइट ने सूती कपड़ा मिल की रूपरेखा प्रस्तुत की। इसने भावी कारखाना पद्धति को जन्म दिया।
(2) महंगी नई मशीनों को कारखानों में लगाना-अब महंगी नई मशीनें खरीद कर उन्हें कारखानों में लगाया जा सकता था।
(3) उत्पादन प्रक्रिया पर निगरानी-अब कारखाने में समस्त प्रक्रियाएँ एक छत के नीचे और एक मालिक के हाथों में आ गई थीं। इसके फलस्वरूप उत्पादन-प्रक्रिया पर निगरानी रखना, गुणवत्ता का ध्यान रखना और मजदूरों के काम पर नजर रखना सम्भव हो गया था। जब तक उत्पादन गाँवों में हो रहा था, तब तक ये बातें सम्भव नहीं थीं।
(4) विशाल कारखानों की स्थापना-उन्नीसवीं शताब्दी के आरम्भ में कारखाने इंग्लैण्ड के अभिन्न अंग बन गए थे। ये नए कारखाने बहुत विशाल थे।