श्रम के लैंगिक विभाजन से आशय-श्रम के लैंगिक विभाजन से आशय श्रम के बँटवारे का वह तरीका है जिसमें घर के अंदर के सारे काम परिवार की औरतें करती हैं या अपनी देखरेख में घरेलू नौकरों/नौकरानियों से कराती हैं, जबकि घर के बाहर का सारा कार्य पुरुष करते हैं।
भारत में श्रम का लैंगिक विभाजन-भारत में श्रम के लैंगिक विभाजन को निम्न प्रकार से देखा जा सकता है-
गृहस्थ स्त्रियाँ प्रायः सबसे पहले उठकर अपना कार्य प्रारम्भ करती हैं और देर रात तक समाप्त करती हैं। लेकिन उनका कार्य अनुत्पादक माना जाता है। वह कार्य राष्ट्रीय आय का भाग नहीं होता।
कृषि के क्षेत्र में जहाँ 80 प्रतिशत स्त्रियाँ काम कर रही हैं, स्त्री को पुरुष की अपेक्षा कम मजदूरी मिलती है।
घरेलू उद्योगों में स्त्रियों को न तो रोजगार की सुरक्षा है और न निश्चित दर पर मजदूरी मिलती है। श्रम के कल्याण की कोई व्यवस्था नहीं है तथा वहाँ उनके यौन शोषण का भी भय बना रहता है।
संगठित उद्योगों में स्त्रियाँ निम्न स्तर पर ही कार्य कर रही हैं।
वृत्ति समूहों की दृष्टि से सर्वाधिक स्त्रियाँ शिक्षण, चिकित्सा और नर्सिंग के क्षेत्र में हैं।
भारत की विधायिका में महिला प्रतिनिधियों का अनुपात बहुत ही कम है।