साम्प्रदायिकता की अवधारणा साम्प्रदायिकता की समस्या तब खड़ी होती है जब धर्म को राष्ट्र का आधार मान लिया जाता है या जब राजनीति में धर्म की अभिव्यक्ति एक समुदाय की विशिष्टता के दावे और पक्ष-पोषण का रूप लेने लगती है तथा इसके अनुयायी दूसरे धर्मावलम्बियों के खिलाफ मोर्चा खोलने लगते हैं । राजनीति को धर्म से इस तरह से जोड़ना ही साम्प्रदायिकता है।
लोकतांत्रिक राजनीति में साम्प्रदायिकता के प्रभाव (अथवा) भारतीय राजनीति में साम्प्रदायिकता की अभिव्यक्ति के रूप-भारतीय लोकतांत्रिक राजनीति में साम्प्रदायिकता की अभिव्यक्ति के रूप या उसके प्रभाव निम्नलिखित हैं-
धार्मिक पूर्वाग्रह-साम्प्रदायिकता की सबसे आम अभिव्यक्ति दैनंदिन जीवन में ही दिखती है। इसमें धार्मिक पूर्वाग्रह, धार्मिक समुदायों के बारे में बनी-बनाई धारणाएँ तथा एक धर्म को दूसरे धर्म से श्रेष्ठ मानने की मान्यताएँ शामिल हैं।
बहुसंख्यकवाद-बहुसंख्यकवाद धार्मिक समुदाय की राजनीतिक प्रभुत्व स्थापित करने की कोशिश बहुसंख्यकवाद का रूप ले लेती है।
साम्प्रदायिक आधार पर राजनीतिक गोलबंदी-साम्प्रदायिक आधार पर राजनीतिक गोलबन्दी साम्प्रदायिकता का एक अन्य रूप है । इसके अन्तर्गत चुनावी राजनीति में एक धर्म के मतदाताओं की भावनाओं या उनके हितों की बात उठाने के तरीके अपनाये जाते हैं।
साम्प्रदायिक हिंसा कई बार साम्प्रदायिकता सबसे घृणित रूप लेकर सम्प्रदाय के आधार पर हिंसा, दंगा और नरसंहार कराती है।