विधान परिषद विधान सभा की अपेक्षा एक निर्बल सदन है।
इसके निम्नलिखित कार्य हैं-
(i) विधायिनी शक्तियाँ-धन विधेयक को छोड़कर अन्य विधेयक विधान परिषद में पेश किया जा सकता है। परंतु कोई भी विधेयक विधान सभा के सहमति के बिना पारित नहीं होता। अत: विधायनी शक्तियों नियः(ii) वित्तीय शक्तियाँ-वित्तीय क्षेत्र में विधानपरिषद की स्थिति , केन्द्र सरकार के राज्यसभा की तरह है। धन विधेयक इस सभा में पेश ‘नहीं किया जाता है। विधानसभा में पारित होने के बाद धन विधयक विधानपरिषद में आता है। विधान परिषद अपनी सुझाव के साथ अधिक-से-अधिक 14 दिनों तक रख सकता हैं। 14 दिनों के अन्दर विधानसभा में लौटा देना पड़ता है नहीं तो विधेयक स्वतः पारित समझा जाता है।(iii) प्रशासकीय अधिकार-विधान परिषद का कार्यकारिणी पर बहुत कम अधिकार है। विधान परिषद अविश्वास के द्वारा नहीं हटा सकता, सिर्फ आलोचना कर सकता है। वास्तव में विधान परिषद के पास नगण्य अधिकार है।