19वीं सदी में भारत में मुद्रण संस्कृति ने महिलाओं के जीवन को निम्न प्रकार से प्रभावित किया-
महिलाओं की जिंदगी और उनकी भावनाओं पर गंभीरता से पुस्तकें लिखी गईं।
मध्यम वर्ग की महिलाएँ पहले की तुलना में पढ़ने में अधिक रुचि लेने लगीं।
उदारवादी माता-पिता महिलाओं को पढ़ने के लिए विद्यालयों में भेजने लगे।
महिला लेखिकाओं ने महिलाओं की समस्याओं पर चर्चा की तथा उनके विभिन्न मुद्दे केन्द्र में आए।
कई पत्रिकाओं ने लेखिकाओं को जगह दी और उन्होंने नारी-शिक्षा की आवश्यकता पर बल दिया।