भारत में मुद्रण युग से पहले की पांडुलिपियाँ-भारत में संस्कृत, अरबी, फारसी और विभिन्न क्षेत्रीय भाषाओं में हस्तलिखित पांडुलिपियों की एक समृद्ध परम्परा थी। पांडुलिपियाँ ताड़ के पत्तों या हाथ से बने कागज पर नकल कर बनाई जाती थीं। कभी-कभी तो पत्तों पर बेहतरीन तस्वीरें भी बनाई जाती थीं। इन्हें तख्तियों की जिल्द में या सिलकर बाँध दिया जाता था। लेकिन ये पांडुलिपियाँ नाजुक होती थीं; काफी महँगी होती थीं। इन्हें सावधानी से पकड़ना पड़ता था तथा इन्हें पढ़ना भी आसान नहीं था। इसलिए इनका व्यापक दैनिक इस्तेमाल नहीं होता था।