जर्मनी के धर्मसुधारक मार्टिन लूथर ने रोम कैथोलिक चर्च की कुरीतियों की आलोचना करते हुए अपने 95 निबन्ध लिखे। इसकी एक छपी प्रति विटनबर्ग के गिरजाघर के द्वार पर लगा दी गई। इसमें मार्टिन लूथर ने चर्च को शास्त्रार्थ करने की चुनौती दी। मार्टिन लूथर के लेख बड़ी संख्या में छापे गए और लोगों द्वारा पढ़े जाने लगे। इसके फलस्वरूप चर्च में विभाजन हो गया और प्रोटेस्टेन्ट धर्मसुधार की शुरुआत हुई। कुछ ही समय में न्यू टेस्टामेन्ट के लूथर के अनुवाद की 5000 प्रतियाँ बिक गईं और तीन महीने के अन्दर दूसरा संस्करण निकालना पड़ा। मार्टिन लूथर ने कहा. "मुद्रण ईश्वर की दी हुई महानतम देन है, सबसे बड़ा उपहार।" कुछ इतिहासकारों के अनुसार छपाई ने नया बौद्धिक वातावरण बनाया और इससे धर्म सुधार आन्दोलन के नये-नये विचारों के प्रसार में सहायता मिली।