यूरोपीय प्रबन्धकीय एजेन्सियों द्वारा भारतीय उद्योगों पर नियन्त्रण स्थापित करना भारतीय व्यापार पर औपनिवेशिक देशों के नियन्त्रण स्थापित होने के बाद भारतीय व्यवसायियों के लिए व्यापार का क्षेत्र सीमित होता गया। भारतीय व्यवसायियों के लिए अपना तैयार माल यूरोप में बेचना निषिद्ध कर दिया गया। अब वे मुख्य रूप से कच्चे माल और अनाज, कच्ची कपास, अफीम, गेहूं और नील का ही निर्यात कर सकते थे क्योंकि अंग्रेजों को इन वस्तुओं की आवश्यकता थी। धीरे-धीरे जहाजरानी व्यवसाय का द्वार भी उनके लिए बन्द कर दिया था।
प्रथम विश्व युद्ध तक यूरोपीय प्रबन्धकीय एजेन्सियों का भारतीय उद्योगों के विशाल क्षेत्र पर नियन्त्रण स्थापित था। इनमें हीगलर्स एंड कम्पनी, एन्ड्रयू यूल और जार्डीन स्किनर एंड कम्पनी सबसे बड़ी कम्पनियाँ थीं। ये एजेन्सियाँ पूँजी की व्यवस्था करती थीं, संयुक्त उद्यम कम्पनियाँ स्थापित करती थीं तथा उनका प्रबन्धन सम्भालती थीं। अधिकांश मामलों में भारतीय वित्तपोषक पूँजी उपलब्ध कराते थे, जबकि निवेश और व्यवसाय से सम्बन्धित निर्णय यूरोपीय एजेन्सियाँ लेती थीं। यूरोपीय व्यापारियों-उद्योगपतियों के अपने वाणिज्यिक परिसंघ थे, जिनमें भारतीय व्यवसायियों को सम्मिलित नहीं किया जाता था।