दीवान बनने के बाद भी कंपनी खुद को व्यापारी ही मानती थी क्योंकि कंपनी का मुख्य उद्देश्य अधिक राजस्व हासिल करना व कम से कम कीमत पर बढ़िया सूती व रेशमी कपड़ा खरीदना था। दूसरे, वह भारी-भरकम लगान तो प्राप्त करना चाहती थी किन्तु उसके आंकलन व वसूली की उसकी कोई नियमित व्यवस्था नहीं थी। इस प्रकार वह एक व्यापारी कंपनी के रूप में ही सीमित थी।