कांग्रेस ने दीर्घकाल तक दलितों की समस्याओं पर ध्यान नहीं दिया क्योंकि वह रूढ़िवादी सवर्ण हिन्दू सनातनपंथियों से भयभीत थी। दलित नेता पिछड़े वर्गों की समस्याओं का अलग राजनीतिक समाधान ढूँढ़ना चाहते थे। उन्होंने दलितों के लिए विधानसभाओं में पृथक् निर्वाचिका की व्यवस्था किए जाने पर बल दिया। उनका कहना था कि उनका सामाजिक पिछड़ापन केवल राजनीतिक सशक्तीकरण से ही दूर हो सकता है। इसलिए सविनय अवज्ञा आन्दोलन में दलितों की हिस्सेदारी काफी सीमित थी। महाराष्ट्र तथा नागपुर में दलितों के संगठन काफी शक्तिशाली थे। इसलिए इन प्रदेशों में बहुत कम दलितों ने सविनय अवज्ञा आन्दोलन में भाग लिया।