राजस्थान में मनोरंजन के पारम्परिक साधन: राजस्थान के विभिन्न अचलों में स्थानीय एवं सहजता से उपलब्ध पारंपरिक साधनों द्वारा मनोरंजन किया जाता है। राजस्थान के ग्रामीण निवासी, स्थानीय एवं सहजता से उपलब्ध साधनों द्वारा मनोरंजन करते हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में बच्चों द्वारा खेले जाने वाले मुख्य खेल हैं—गिल्ली डंडा, सितोलिया, लुका-छिपी (आँख-मिचौनी), घोड़ा-दड़ी, मारदड़ी, लटू चकर, कंचे का खेल आदि। चौपड़-चौसर के खेल कपड़े पर बनी बिसात पर खेले जाते हैं। चर-भर, नर-छारी आदि जमीन पर बनाकर खेलते हैं।अन्य जन समुदाय के मनोरंजन के लिए सपेरे, कालबेलिये, मदारी, जादूगर, पतंगबाजी और कठपुतली आदि के खेल प्रचलित हैं। लोक नाट्य शैली में ख्याल, हेला, गवरी, तमाशा, तुर्रा कलंगी, रासधानी, रामलीला, दंगल, स्वांग, नौटंकी, भवई आदि भी मनोरंजन के साधन हैं। इन पारंपरिक खेलों के साथ-साथ आधुनिक खेल एवं मनोरंजन के साधन भी यहाँ की जीवनशैली में देखने को मिलते हैं।