सेवा क्षेत्र के विकास में शिक्षा की भूमिका सर्वाधिक महत्वपूर्ण है। शिक्षा द्वारा ही मानवीय संसाधनों का पूर्ण विकास तथा विस्तार हो सकता है। 21वीं सदी को ज्ञान की सदी के रूप में देखा जा रहा है। अर्थात् शिक्षित तथा प्रशिक्षित व्यक्ति द्वारा ही सेवा तथा अन्य क्षेत्रों का कार्य संपन्न हो सकेगा। कार्यकुशल लोगों का ही कृषि, उद्योग, सैना क्षेत्र तथा अन्य क्षेत्रों में मांग रहेगी। भारत ने संचार एवं सूचना सेवाओं के क्षेत्र में अभूतपूर्व प्रगति की है। इसका प्रमुख कारण शिक्षा में सुधार तथा ज्ञान और कौशल का विकास है।
हमारे देश भी युवाशक्ति का विशाल भण्डार है। इनकी उचित शिक्षा और प्रशिक्षण द्वारा हम सेवा क्षेत्र में विश्व में श्रेष्ठता प्राप्त कर सकते हैं।
सेवा क्षेत्र के विकास में शिक्षा और प्रशिक्षण के तीन मुख्य स्तर होते हैं-
प्रारंभिक शिक्षा, माध्यमिक शिक्षा तथा उच्च एवं तकनीकी शिक्षा।
- प्रारंभिक शिक्षा प्रारंभिक शिक्षा युवावर्ग को न्यूनतम एवं आधारभूत कौशलसिखाती है। प्रारंभिक शिक्षा का हमारी उत्पादक क्रियाओं पर सर्वाधिक प्रभाव पड़ता है। इसी कारण प्रारंभिक शिक्षा को सर्वोच्च प्राथमिकता प्रदान की गई है।
- माध्यमिक शिक्षा-आर्थिक विकास एवं संरचनात्मक सुविधाओं को बनाए रखने के लिएह में बहुत बड़ी मात्रा में प्रशिक्षित श्रम की आवश्यकता पड़ती है। माध्यमिक शिक्षा द्वारा ही इस प्रकार की श्रमशक्ति का निर्माण होता है।
- उच्च शिक्षा देश के आर्थिक विकास के लिए कुछ चुने हुए प्रतिभावान छात्रों की उच्च एवं तकनीकि शिक्षा प्रदान करना भी अनिवार्य है। उच्च शिक्षा द्वारा ही देश में डॉक्टर, इंजीनियर, प्राध्यापक, वैज्ञानिक एवं अन्य उच्च स्तर के कर्मचारियों की पूर्ति होती है।